Classical Dance of india in hind: भारत के शास्त्रीय नृत्य भारत की संस्कृति और सभ्यता मे चार चाँद लगाते है । भारतीय शास्त्रीय नृत्यों की जानकारी भरत मुनि के नाट्य शास्त्र से मिलती है, जिसे शास्त्रों मे पंचम वेद माना गया है । भारतीय नाटक अकादमी ने 08 शास्त्रीय नृत्यों को शास्त्रीय नृत्यों की संज्ञा दी है । इसके अतिरिक्त संस्कृति मंत्रालय के अनुसार 09 शास्त्रीय नृत्य माने जाते है । इन सभी शास्त्रीय नृत्यों की जानकारी नीचे साझा की जा रही है ।
Classical Dance of india List | भारत के शास्त्रीय नृत्यों की सूची
- भरतनाट्यम
- ओडिसी
- मणिपुरी
- कथक
- कथकली
- कुचीपुड़ी
- मोहिनी अट्टम
- सत्रिया
- छऊ
Classical Dance of india full Details | भारत के शास्त्रीय नृत्ययो की सम्पूर्ण जानकारी
भरतनाट्यम
भरतनाट्यम भारत का सबसे प्राचीन शास्त्रीय नृत्य है । इस नृत्य को दासी अट्टम के नाम से भी जाना जाता है । इस शास्त्रीय नृत्य का पुराना नाम सादिर था । दक्षिण भारत का यह शास्त्रीय नृत्य मंदिरों को समर्पित है। इस नृत्य के साथ सामान्यत: कर्नाटक संगीत का प्रयोग किया जाता है । इस शास्त्रीय नृत्य की जानकारी शिल्पादिकारम एवं अभिनय दर्पण जैसी पुस्तकों से मिलती है । यह भारत का ऐसा पहला पारम्परिक नृत्य है जिसे मंच कला के रूप में नए सिरे से तैयार किया गया और इसे देश और विदेश दोनों में व्यापक स्तर पर प्रस्तुत किया जाता है ।
इस नृत्य का आरंभ ‘आलारिपु’ से होता है तथा अंत ‘तिल्लाना (थिलाना)’ पर होता है । इस शास्त्रीय नृत्य मे नट्टूवार कविता पाठ कर्ता है । इस शास्त्रीय नृत्य मे एकल कलाकार द्वारा विभिन्न भूमिकाओ को दर्शाया जाता है । जिसे एकाहार्य कहा जाता है ।
ओडिसी
यह पूर्वी भारत का शास्त्रीय नृत्य है, जो भगवान कृष्ण से संबंधित है । इस नृत्य को ओरिली भी कहा जाता है । यह नृत्य त्रिभंग मुद्रा मे किया जाता है । इसकी शुरुआत मंगलाचरण से होती है तथा अंत मोक्ष पर होता है ।
मणिपुरी
यह वैष्णव संप्रदाय से संबंधित शास्त्रीय नृत्य है । इस नृत्य के माध्यम से भगवान श्री कृष्ण के बाल्यकाल की कहानीयां दर्शायी जाती है । इसकी तीन प्रमख शैलीयां लाई हरोबा, संकीर्तन एवं रासलीला है । इसमे पेना वाद्ययंत्र का प्रयोग किया जाता है । नृत्य करना, वाद्ययंत्र बजाना एवं गाना गाना एक ही व्यक्ति द्वारा किया जाता है । जिसे पंग चोलेम कहा जाता है । जागोई + चोलेम मणिपुरी के दो प्रमुख भाग है । इसमे 64 तालों का प्रयोग किया जाता है ।
कुचीपुड़ी
दक्षिण भारत के इस शास्त्रीय नृत्य कुचिपुड़ी नृत्य का उदगम आंध्र प्रदेश में हुआ जहां यह 7वीं शताब्दी के आरंभ में भक्ति आंदोलन के परिणामस्वरूप बहुत फला-फूला। कुचिपुड़ी का नाम आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले के कुचेलापुरम गांव से लिया है। इस नृत्य के लिए भागवत पुराण को आधार माना जाता है । यह नृत्य पीतल की तश्तरी मे पैर रखकर किया जाता है । इस नृत्य मे कर्नाटक संगीत वेश किया जाता है । सिद्धदेनद्र योगी को कुचीपुड़ी का आदि गुरु माना जाता है ।
कथक
यह उत्तर भारत का एक अकेला शास्त्रीय नृत्य है । इस नृत्य का अन्य नाम नटवरी है । यह नृत्य राधा कृष्ण की कथाओ पर आधारित है । सामान्यतः एक कहानी सुनाने के लिए इस नृत्य का प्रयोग किया जाता है । घुँघरू और चक्कर इस नृत्य की प्रमुख विशेषता है । कथक नृत्य की वेशभूषा अनारकली या लंबी कमीज चूड़ीदार के साथ होती है । यह नृत्य सामान्यतः लखनऊ घराना, जयपुर घराना एवं बनारस घराना शैली मे किया जाता है।
कथकली
यह शास्त्रीय नृत्य मुख्यतः पुरुषों द्वारा किया जाता है । रामायण एवं महाभारत इस शास्त्रीय नृत्य के आधार है । इसमे नायक को पाचा एवं खलनायक को कथी कहा जाता है । इसमे चेहरे के हाव भाव का प्रदर्शन किया जाता है । इसमे नाटक स्थान को कुट्टमपाल कहा जाता है । इस नृत्य मे नायक के द्वारा सात प्रकार के मेकअप का प्रयोग किया जाता है । इस नृत्य मे 24 मुख्य मुद्रा होती है । इसमे तीन संगीत वाद्ययंत्र इड़क्का, चिंदा एवं मडालाम का प्रयोग होता है ।
मोहिनी अट्टम
यह शास्त्रीय नृत्य सामान्यतः एकल महिला द्वारा किया जाता है । इसमे महिला बालों मे चमेली के सफेद फूलों का प्रयोग करती है । इस नृत्य के दौरान केरल कसावु साड़ी पहनी जाती है । इसमे प्रयोग होने वाले वाद्ययंत्र इड़क्का और मृदगम है । इस शास्त्रीय नृत्य का उल्लेख व्यवहारमाला नामक प्राचीन ग्रंथ मे किया गया है ।
सत्रिया
यह शास्त्रीय नृत्य सबसे नया शस्त्रीय नृत्य है, जिसे वर्ष 2000 मे सामील किया गया । इसकी खोज लगभग 500 वर्ष पूर्व हुई तथा इसके संस्थापक श्रीमंत शंकर देव है । सत्रिया को अंकियानाट के प्रदर्शन के लिए लाया गया । जब इस नृत्य को पुरुष द्वारा किया जाता है तो वह भांगी और महिला करती है तो उसे सीमंगी कहा जाता है । इसमे बोरगत संगीत का प्रयोग होता है ।